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लेखनी प्रतियोगिता -12-Jun-2023 "भूल गया हंसना अब वो "

"भूल गया सदा को हँसना"

किसी को पाने की अभिलाषा
किसी को खोने का डर था
प्यार किसे कितना भर था उससे
ये हर किसी को थी जानने की जिज्ञासा...!! 

स्वार्थ दोनों का था ख़ुद से निहत
एक परिंदे को बना के कैदी रखता था
दूजा साथ पा उसका खुलकर हंसता था
चाहे क्या परिंदा इससे ना कोई मतलब रखता था...!! 

जब भी परिंदा आकाश की उड़ान भरने को होता था
दोनों को यह ना तनिक भी रास आता था
आकर तभी दोनों उसके पंख दबोच लेते थे
परिंदा वही कसमसा कर ज़मी पर गिर कर रोता था...!! 

दिन, महीने और साल गुजरते जाते थे
भूला बैठा परिंदा मासूम हंसी अपनी
बस चुपचाप सा पड़ा कोने में रहता था
देख ये सब हुई ज़ख्मी आत्मा उसकी थी अपनी...!! 

अच्छा होता साथ न इनका मिलता मुझको तो
तब खुश होकर मैं आकाश को जब चाह छूता लेता
सारी दुनिया की मनचाही शहर मैं ख़ुद ही कर लेता 
जीता दिल भर कर ना बंदिश कोई मुझ पर होती...!! 

खो दिया जिनकी खातिर अस्तित्व ख़ुद का अपना
उनको ना थी चाहत और ना परवाह ही मेरी
बस अधिपत्य अपना था मुझ पर उनको जमाना
हस्ती को था बस मेरी अपने हाथों मिटाना..!! 

हो गए सफल वो दोनों इस कारनामे में
कैद कर लिया मुझको अपने ही इरादों में
जिंदा हूं मग़र मुर्दा सी हालत उसकी रहती हैं
भूल गया सदा को अब पंख खोल कर उड़ना..!! 

मधु गुप्ता "अपराजिता"

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9 Comments

Gunjan Kamal

14-Jun-2023 06:43 AM

👌👏

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कमाल की रचना

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बहुत बहुत धन्यवाद 🙏🙏

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Thank you so much🙏🙏

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